मंगलवार, 12 अगस्त 2025

After marriage biwi ko kaise manaye , after marriage how to solved problems

 मेरी शादी को लगभग 6 महीने हो चुके थे। अपनी पसंद की शादी करने के लिए मैंने बहुत पापड़ बेले थे। हमारे घर में यह पहली ऐसी शादी थी, जो घर वालों की मर्जी से नहीं हुई थी। लड़की मैंने खुद पसंद की थी।

मुश्किलें तो बहुत आईं, सभी को मनाने में, लेकिन लंबे समय की कोशिश के बाद मां-बाबा मान गए और फिर धीरे-धीरे बाकी रिश्तेदार भी।

मैंने अपनी मर्जी से शादी तो कर ली, लेकिन 6 महीने के बाद महसूस हुआ कि बहुत सारी बातें मैंने नजरअंदाज कर दीं, जो परिवार में रहने के लिए जरूरी होती हैं।

मां ने तो बहुत समझाया था, लेकिन मैंने अपनी जिद पकड़ रखी थी। आज 6 महीने बाद जब उन सारी बातों पर विचार करता हूं, तो लगता है कि कई गलतियां हो गईं।

तब्बुसम जब हमारे घर में नई-नई आई थी, तो मां-बाबा ने उसे बहुत प्यार दिया और घर के रीति-रिवाज सिखाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।

लेकिन तब्बुसम ने कई बार बचपना दिखाया। शादी से पहले जैसा उसका बर्ताव था, वैसा ही शादी के बाद भी रहा। उसने कभी यह महसूस नहीं किया कि अब वह एक परिवार का हिस्सा है और उसे कुछ जिम्मेदारियां निभानी चाहिए।

मां अक्सर कहती थीं, "बेटा, तुम्हारी बहू सजने-संवरने पर ज्यादा ध्यान देती है, और घर के काम में उसका योगदान बहुत कम है। पहले मैं सारा काम खुद करती थी, लेकिन बहू के आने के बाद थोड़ा आराम तो मिलना चाहिए।"

मैं सोच में पड़ गया कि तब्बुसम को कैसे समझाऊं। आखिरकार, एक दिन मैंने उसे अपने पास बैठा लिया और पूछा, "तब्बुसम, जो खाना तुम खाती हो, वह कौन बनाता है?"

उसने जवाब दिया, "मां बनाती हैं।"

फिर मैंने पूछा, "कपड़े कौन धोता है?"

उसने कहा, "मां धोती हैं।"

मैंने पूछा, "घर की साफ-सफाई कौन करता है?"

उसने जवाब दिया, "मां करती हैं।"

फिर मैंने उससे पूछा, "तुम दिनभर क्या करती हो? तुम्हारा मन कमरे में अकेले नहीं लगता?"

उसने जवाब दिया, "मैं आपके ऑफिस जाने के बाद अपना कमरा ठीक करती हूं, नहा-धोकर तैयार होती हूं। फिर मां जी नाश्ते के लिए आवाज देती हैं, मैं नाश्ता करके कमरे में आ जाती हूं और टीवी देखती हूं या इंटरनेट पर कुछ शो देख लेती हूं।"

मैंने उससे कहा, "अगर हम मां-बाबा से अलग रहे, तो कैसा लगेगा?"

उसने कहा, "यह तो अच्छा ही होगा। कम से कम मैं खुलकर जी तो पाऊंगी।"

मैंने उससे पूछा, "अगर अलग रहेंगे, तो खाना कौन बनाएगा?"

उसने जवाब दिया, "हम नौकर रख लेंगे।"

तब मैंने कहा, "क्या तुम इस घर को अपना घर नहीं समझती?"

उसने कहा, "समझती हूं। जब आप मेरे हैं, तो आपका सब कुछ मेरा है।"

मैंने उससे कहा, "जब यह घर तुम्हारा है, तो इसका ध्यान कौन रखेगा? क्या तुम इसे नौकरों के हवाले करना चाहोगी?"

उसने जवाब दिया, "नहीं, यह तो गलत होगा।"

फिर मैंने उसे समझाया, "मां इस घर को अपना मानकर सारा काम करती हैं। अगर तुम भी उनकी मदद करोगी, तो उन्हें थोड़ा आराम मिलेगा। यह घर हमारा है, और हमें इसे मिलजुलकर संभालना चाहिए। जरूरत पड़ने पर हम नौकर रख लेंगे, लेकिन तुम्हारा योगदान भी जरूरी है।"

तब्बुसम को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसकी आंखों में हल्की शर्मिंदगी थी। उसने मां के पास जाकर माफी मांगी, और मां ने उसे प्यार से गले लगा लिया।

अगले दिन से तब्बुसम ने घर के कामों में मां की मदद करनी शुरू कर दी। अब दोनों मिलकर काम करतीं और समय पर आराम करतीं।

इससे न केवल घर का माहौल बेहतर हुआ, बल्कि मेरे मन का बोझ भी हल्का हो गया। मुझे लगा कि मैंने सही निर्णय लिया था और अब हमारा परिवार एक नई शुरुआत के साथ खुशहाल हो गया था।

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