🏠 मिया-बीवी का छोटा-सा झगड़ा, बड़ी-सी मोहब्बत
सुबह का वक्त था। रसोई में बर्तनों की आवाज़ आ रही थी, और हॉल में टीवी चल रहा था।
ज़ारा चाय बना रही थी, और आरिफ फोन में व्यस्त था।
"तुम्हें बस फोन से फुर्सत नहीं, नाश्ता ठंडा हो गया!"
ज़ारा ने चिड़चिड़ाते हुए कहा।
आरिफ ने भौंहें चढ़ाईं,
"अरे दो मिनट तो दे दो, ऑफिस का काम है।"
"काम? हर वक्त बस काम! कभी घर की भी सोच लिया करो,"
ज़ारा की आवाज़ ऊँची हो गई।
आरिफ को गुस्सा आ गया,
"तुम्हें तो बस शिकायत करनी है, तुम्हें मेरी मेहनत दिखती ही नहीं।"
माहौल गरम हो गया। दोनों ने बात करना बंद कर दिया।
चुप्पी घर में फैल गई, जैसे हवा भी रुक गई हो।
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दोपहर होते-होते, दोनों अपने-अपने काम में लगे रहे।
लेकिन दिल में कसक थी।
आरिफ बार-बार सोचा रहा था—क्या सच में मैंने उसे नज़रअंदाज़ कर दिया?
ज़ारा भी सोच रही थी—क्या मैंने ज़्यादा बोल दिया?
शाम को आरिफ घर लौटा, हाथ में समोसे और ज़ारा की पसंदीदा मिठाई लेकर।
"देखो, ऑफिस में भी तुम्हें याद किया,"
उसने मुस्कुराते हुए कहा।
ज़ारा हँसी दबा न सकी,
"माफ करना... मैं सुबह ज़रा ज़्यादा बोल गई थी।"
आरिफ ने उसके हाथ पकड़ते हुए कहा,
"और मैं भी... तुम्हारा गुस्सा भी प्यारा है, लेकिन तुम्हारी मुस्कान सबसे प्यारी है।"
दोनों ने चाय के साथ समोसे खाए, और झगड़ा बारिश की बूँदों की तरह बह गया—
कुछ निशान छोड़कर, लेकिन माहौल ठंडा करके।
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💡 सीख: रिश्ते में झगड़े होना बुरा नहीं, लेकिन उन्हें सुलझाने के लिए एक-दूसरे तक लौट आना ज़रूरी है।
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